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राजनीतिक व्‍यवस्‍था

राज्‍यों में सरकार की प्रणाली केन्‍द्र की प्रणाली के निकट सदृश है।


कार्यपालिका

राज्‍यपाल
राज्‍य की कार्यपालिका में राज्‍यपाल और मुख्‍यमंत्री के नेतृत्‍व में मंत्री परिषद् होती है। राज्‍य के राज्‍यपाल की नियुक्ति पांच वर्षों के कार्यकाल के लिए राष्‍ट्रपति द्वारा की जाती है, और जब तक राष्‍ट्रपति चाहता है वह अपने पद पर रहता है। केवल भारत के नाग‍रिक, जिनकी आयु 35 वर्ष हो, इस पद पर नियुक्ति के पात्र होते हैं। राज्‍य की कार्य पालिका की शक्ति राज्‍यपाल के पास होती है।


मंत्री परिषद

मुख्‍यमंत्री की नियुक्ति राज्‍यपाल द्वारा की जाती है और वह मुख्‍यमंत्री की मंत्रणा से अन्‍य मंत्रियों की भी नियुक्ति करता है। मंत्री परिषद संयुक्‍त रूप से राज्‍य के विधान सभा के प्रति उत्‍तरदायी होती है।


विधायिका

प्रत्‍येक राज्‍य के लिए एक विधायिका होती है, जिसमें राज्‍यपाल और एक सदन या दो सदन जैसा भी मामला हो, होते हैं। बिहार, जम्‍मू और कश्‍मीर, कर्नाटक, महाराष्‍ट्र और उत्‍तर प्रदेश में दो सदन हैं जिन्‍हें विधान परिषद और विधान सभा के रूप में जाना जता है। संसद कानून बनाकर मौजूदा विधान परिषद को भंग करने या जहां यह नहीं है वहां इसका सृजन करने की व्‍यवस्‍था कर सकता है यदि प्रस्‍ताव संबंधित विधान सभा के संकल्‍प द्वारा समर्थित हो।


विधान परिषद

राज्‍य के विधान परिषद (विधान परिषद) में राज्‍य के विधान सभा में सदस्‍यों की कुल संख्‍या की एक तिहाई और किसी भी कारणों से 40 सदस्‍य से कम सदस्‍य नहीं होते हैं (जम्‍मू और कश्‍मीर के विधान परिषद में जम्‍मू और कश्‍मीर के संविधान के अनुच्‍छेद 50 द्वारा 36 सदस्‍यों की व्‍यवस्‍था की गई है)। परिषद के लगभग एक तिहाई सदस्‍य विधान सभा के सदस्‍यों द्वारा ऐसे व्‍यक्तियों में से चुने जाते हैं जो इसके सदस्‍य नहीं है, िएक तिहाई निर्वाचिका द्वारा, जिसमें नगरपालिकाओं के सदस्‍य, जिला बोर्डों और राज्‍य में अन्‍य प्राधिकरणों के सदस्‍यों द्वारा चुने जाते है, एक बारह का चुनाव निर्वाचिका द्वारा ऐसे व्‍यक्तियों में से चुने जाते हैं जिन्‍होंने कम से कम तीन वर्षों तक राज्‍य के भीतर शैक्षिक संस्‍थाओं में अध्‍यपन में लगा रहा हो जो माध्‍यमिक विद्यालयों की कक्षों के नीचे न हो और अन्‍य एक बारह का चुनाव सी पंजीकृत स्‍नातकों द्वारा किया जाता है जो तीन वर्ष से अधिक समय पहले पढ़ाई समाप्‍त कर लिए है। शेष सदस्‍य राज्‍यपाल द्वारा साहित्‍य, विज्ञान, कला, सहयोग आन्‍दोलन और सामाजिक सेवा में उत्‍कृष्‍ट कार्य करने वाले व्‍यक्तियों में से नियुक्‍त किए जाते है। विधान परिषदों को भंग नहीं किया जा सकता परन्‍तु उनके एक तिहाई सदस्‍य प्रत्‍येक दूसरे वर्ष में सेवा निवृत्‍त होते हैं।


विधान सभा

राज्‍य का विधान सभा (विधान सभा) में 500 से अनधिक और कम से कम 60 सदस्‍य राज्‍य में क्षेत्रीय चुनाव क्षेत्रों से प्रत्‍यक्ष चुनाव द्वारा चुने जाते हैं ( संविधान के अनुच्‍छेद 371 एक द्वारा सिक्किम के विधान सभा में 32 सदस्‍यों की व्‍यवस्‍था की गई है। क्षेत्रीय चुनाव का सीमांकन ऐसा‍ किया जाना है कि प्रत्‍येक चुनाव क्षेत्र की जनसंख्‍या और इसको आबंटित सीटों की संख्‍या के बीच अनुपात जहां तक व्‍यावहारिक हो पूरे राज्‍य में एक समान हो। संविधान सभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है जब तक कि इसे पहले भंग न किया जाए।


अधिकार और कार्य

राज्‍य विधान मंडल को संविधान की सातवीं अनुसूची 2 में बताए गए विषयों पर और उसके साथ अनुसूवी 3 में बताए गए विषय में सूचीबद्ध अधिकारों पर विशिष्‍ट अधिकार हैं जिनमें राज्‍य सरकार द्वारा किए जाने वाले सभी व्‍ययों, कर निर्धारण और उधार लेने के प्राधिकार शामिल हैं। राज्‍य विधान सभा को अकेले ही यह अधिकार है कि मौद्रिक विधेयक का उदभव करे। विधान सभा से मौद्रिक विधेयक प्राप्‍त होने के 14 दिनों के अंदर अनिवार्य पाए जाने पर विधान परिषद केवल इसमें किए जाने वाले परिवर्तनों की सिफारिश कर सकती है। विधान सभा इन सिफारिशों को स्‍वीकार या अस्‍वीकार कर सकती है।


विधेयकों का आरक्षण

एक राज्‍य के राज्‍यपाल को अधिकार है कि वह राष्‍ट्रपति के पास विचाराधीन किसी विधेयक को आरक्षित करे। सम्‍पत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण, उच्‍च न्‍यायालय की स्थिति और अधिकारों को प्रभावित करने वाले उपाय और अंतर राज्‍यीय नदी या नदी घाटी विकास परियोजना में बिजली वितरण या पानी के भंडारण, वितरण और बिक्री पर कर आरोपण जैसे विषयों पर विधेयकों को अनिवार्यत: इस प्रकार आरक्षित किया जाए। राष्‍ट्रपति के पूर्व अनुमोदन के बिना, अंतर राज्‍यीय व्‍यापार पर प्रतिबंध लगाने वाले किसी विधयेक को राज्‍य विधान मंडल में प्रस्‍तुत नहीं किया जा सकता है।


कार्यपालिका पर नियंत्रण

राज्‍य विधायिका वित्तीय नियंत्रण के सामान्‍य अधिकार के उपयोग के अलावा सभी सामान्‍य संसदीय युक्तियों का उपयोग करता है, कार्यपालिका के दैनिक कार्यों पर नजर रखने के लिए जैसे प्रश्‍न, चर्चा, वाद-विवाद, स्‍थगित करना और अविश्‍वास प्रस्‍ताव लाना एवं प्रस्‍ताव पारित करने का उपयोग करता है। उनकी आकलन और सार्वजनिक लेखा पर समितियां भी हैं, जो सुनिश्वित करती हैं कि विधायिका द्वारा स्‍वीकृत अनुदानों का उपयोग उचित रूप से किया जा रहा है।


स्रोत: इंडिया बुक 2020 - एक संदर्भ वार्षिक